Tuesday, March 13, 2012

खुदा के लिए खुदा से

तुम्हारी ज़ात
इक पहेली है
जिसे इन दिनों
इंसान खून से रंग रहा है
तुम्हारे नाम पर क़त्ले आम
एक आम सी बात हो चली है
टोपियाँ नहीं, नाम नहीं,
सर कट रहे हैं
क़ातिल तुम्हारी क़सम खा रहे हैं
हर सम्त
सिर्फ़ तुम्हारी मौजूदगी साबित करने
कि होड़ लगी है
तुम हो या फिर नहीं हो
ये बहस हर नुक्कड़ पर होली खेलने
की फिराक में रहती है
जो
तुम्हे जानते नहीं
वो
तुम्हे सबसे ज़्यादा मानते हैं
तुम क्यों ख़ामोश हो?
इन्हें बताते क्यों नहीं
कि तुम हो,
एक बच्चे की छोटी सी ख़ुशी
बहती नदी की धारा में,
जंगल के सन्नाटे में
प्यार में मुहब्बत में
तुम जिंदा हो!!!


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